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अनु॒ द्यावा॑पृथि॒वी तत्त॒ ओजोऽम॑र्त्या जिहत इन्द्र दे॒वाः। कृ॒ष्वा कृ॑त्नो॒ अकृ॑तं॒ यत्ते॒ अस्त्यु॒क्थं नवी॑यो जनयस्व य॒ज्ञैः ॥१५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

anu dyāvāpṛthivī tat ta ojo martyā jihata indra devāḥ | kṛṣvā kṛtno akṛtaṁ yat te asty ukthaṁ navīyo janayasva yajñaiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अनु॑। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। तत्। ते॒। ओजः॑। अम॑र्त्याः। जि॒ह॒ते॒। इ॒न्द्र॒। दे॒वाः। कृ॒ष्व। कृ॒त्नो॒ इति॑। अकृ॑तम्। यत्। ते॒। अस्ति॑। उ॒क्थम्। नवी॑यः। ज॒न॒य॒स्व॒। य॒ज्ञैः ॥१५॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:18» मन्त्र:15 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:6» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:15


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (कृत्नो) करनेवाले (इन्द्र) राजन् ! (ते) आपके समीप से जो (अमर्त्याः) साधारण मनुष्यों के स्वभाव से विलक्षण स्वभाववाले (देवाः) विद्वान् जन (यत्) जो (अकृतम्) नहीं किया गया कर्म और (नवीयः) अतिशय नवीन वचन (उक्थम्) कहने योग्य (अस्ति) है (तत्) उस (ते) आपके वचन को (जिहते) प्राप्त होते और (द्यावापृथिवी) भूमि और सूर्य को (अनु) पश्चात् प्राप्त होते हैं उनको आप (यज्ञैः) मेल करनेरूप व्यवहारों से (जनयस्व) प्रकट कीजिये और (ओजः) पराक्रम को (कृष्वा) करिये ॥१५॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! आप लोग भूमि और बिजुली आदि की विद्या से नवीन-नवीन कार्य को सिद्ध करिये ॥१५॥ इस सूक्त में इन्द्र, विद्वान् और राजा के गुणवर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह अठारहवाँ सूक्त और छठा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे कृत्नो इन्द्र ! ते तव सकाशाद्येऽमर्त्या देवा यदकृतं नवीय उक्थमस्ति तत्ते जिहते द्यावापृथिवी अनु जिहते तास्त्वं यज्ञैर्जनयस्वोजः कृष्वा ॥१५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अनु) (द्यावापृथिवी) भूमिसूर्य्यौ (तत्) (ते) तव (ओजः) पराक्रमम् (अमर्त्याः) साधारणमनुष्यस्वभावाद्विलक्षणाः (जिहते) प्राप्नुवन्ति (इन्द्र) राजन् (देवाः) (कृष्वा) कुरुष्व। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (कृत्नो) कर्त्तः (अकृतम्) अक्रियमाणं कर्म्म (यत्) (ते) तव (अस्ति) (उक्थम्) वक्तुमर्हम् (नवीयः) अतिशयेन नूतनं वचनम् (जनयस्व) (यज्ञैः) सङ्गतिमयैर्व्यवहारैः ॥१५॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यूयं भूमिविद्युदादिविद्यया नवीनं नवीनं कार्यं साध्नुतेति ॥१५॥ अत्रेन्द्रविद्वद्राजगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्यष्टादशं सूक्तं षष्ठो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! तुम्ही भूमी, विद्युत इत्यादी विद्येद्वारे नवनवीन कार्य सिद्ध करा. ॥ १५ ॥